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ज़िंदगी ऐसे जिए जा रहा है जैसे गुनाह कीये जा रहा है........

कहते है वक़्त हर ज़ख्मो को भर देता है , पर कभी कभी वक़्त गहरे ज़ख्म भी दे जाता है, जो कभी नहीं भरते। उस कवी को देख के कभी कभी सोचता हूँ  कि कैसे कोई इस तरह जी सकता है, अपनों से दूर किसी वीरान  शहर में, ज़िंदगी को ऐसे जिए जा रहा है जैसे कोई गुनाह किये जा  है।  घर, परिवार भावनाये  जैसे शब्द उसको काल्पनिक लगते है , जैसे वो इन सभी शब्दों को  धीरे धीरे भूलता जा रहा है।  उसकी भूरी आँखे किसी रेगिस्तान की तरह दिखाई देती है सुखी और बंज़र , उसमे पानी का एक कतरा नहीं दीखता  वो शायद रोना भूल गया है या फिर ऐसा लगता है की उसे रोने और हसने में कोई फर्क महसूस नहीं होता। यूँ तो आत्मा अमर होती है और जिस्म नश्वर पर ऐसा लगता है कि उस कवी की आत्मा मर गयी  है और वो इस सड़े  हुये जिस्म का  बोझ उठाये घूम रहा है , जैसे की वो किसी गुनाह का प्रायश्चित करना चाहता हो। उसकी लिखी हुए कविताये और कहानियां पढ़ी है मैंने, उसमे से प्रेम की खुसबू आती थी , अब वो ऐसी कहानियां नहीं लिखता उसके लिखे हुए हर शब्द से जलते हुए जिस्म की बदबू आती है ऐसा लगता है की किसी कब्रिस्तान की सुखी हुए हड्डी से लिखी गयी हो। उसे मैंने हमेशा रात के अँधेरे में ही बहार निकलते देखा है , शायद उसे रौशनी पसंद नहीं या फिर शायद उसे अँधेरे की आदत हो गयी है या फिर शायद उसने किस्मत के फैसले के साथ समझौता कर लिया है वो समझ गया है की अँधेरा ही उसका किस्मत है।  उसे मैंने हमेशा खुद से बातें करते देखा है, वो जानता है की ना तो वो अपने मन की बात किसी को बोल सकता है और ना ही कोई समझ सकता है। सोचता हूँ की  उस कवी का अंत कैसा होगा , उसकी आखिरी कविता कैसी होगी क्या उसमे वो प्रेम के गीत लिख पायेगा या उसमे करेगा वो अपना क़त्ल , क्या वो माफ़ी के लिए मिन्नतें करेगा खुदा से या फिर देगा उस खुदा को ढेर साडी बददुवाएं।  सोच में पर जाता हूँ जब भी देखता हु उस कवी को , शायद वक़्त का दिया हुवा ज़ख्म है ये भरने वाला नहीं है।  और वो पागल कवी अपने बिना आत्मा वाले सड़े हुए जिस्म का बोझ उठाये हसते हुए जिए जा रहा है..... ऐसे जैसे कि कोई गुनाह किये जा रहा है। 

ख्वाब - जहां दर्द बिकते है !!!!!

चन्दन की खूसबू किसे नहीं पसंद , उसी खुशबू की तलाश में वो नीकल परा है उस घने जंगल में जहां सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा है , जहां के सन्नाटे शोर करते है झींगुरों के आवाज के साथ..... कभी कभी जब झींगुरों की आवाज रुक जाती है तब ऐसा लगता है जैसे जंगल सो गया है। कभी कभी उस जंगल में समुन्द्र के चीखने की भी आवाज आती है, जैसे रात के अँधेरे में पागल हुवा समुन्द्र सारे शहर वालो को बददुआए दे रहा है। ऐसे ही घने जंगल में तलाश ख़त्म होती है उसकी और उसे दीखता है चन्दन का पेड़ , वो चाहता है की उसका एक फूल तोर ले और जाकर डाल दे अपने महबूब के आँचल में , और तभी महसूस होता है उसे अपने बदन पे एक दर्द भरा कसाव , उस चन्दन के पेड़ के रखवाले सांप दबोच लेते है , वे नहीं चाहते है किसी के साथ भी उन फूलों का बटवारा।  सारे सांप अपना अपना ज़हर डाल देते है उस अभागे के शरीर में और दर्द से तरपता हुवा उसे छोर जाते है। उन ज़हरीले सांपो का ज़हर काम नहीं करता और एक का ज़हर दूसरे के ज़हर को  काटता जाता है। उन सांपो के छोटे दाँतों के छेद से रक्त का रिसाव होने लगता है और वो दर्द के आगोश में धीरे धीरे रक्तहीन होता जा रहा है, पलके बंद होने लगती है और वो खुद को मौत के बेहद करीब पाता है।  कहते है की अंत समय में सब कुछ फ़्लैश बैक में दिखाई देने लगता है , उसे भी दीखता है उसका बचपन ........ उसके घर के पास वाला बूढा बरगद का पेड़......पहली बार साइकिल चलाना........ स्कूल जाना....... स्कूल में उसे एक लडकी दिखाई देती है बहुत ही प्यारी , मगर वो हाथ छोडकर जा रही है...........जैसे जैसे समय बढ़ता जा रहा है उसकी पलके बंद होती जा रही है , फ़्लैश बैक में बहुत कुछ स्किप हो रहा है वो खुद को किसी बड़े शहर में देखता है वह उसकी महबूब उसे दिखती है, दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत लडकी........शायद उसने ब्लू कलर का ड्रेस पहना है....... शरीर का सारा रक्त लगभग ख़त्म हो गया है उसे प्यास लग रही है वो चाहता है की समुन्द्र दौर के उसके पास आ जाये और वो उसके नमकीन पानी से अपनी प्यास बुझा ले..........पलके बंद हो रही है वो देखता है की वो अपने महबूब का हाथ छोडकर जा रहा है पलट के देखता है तो उसे दिखाई देती है दर्द भरी दो आँखे जो शायद कह रही है की जाओ तुम्हे मौत कभी न मिले,....तुम इसी दर्द में रहोगे। और फिर सबकुछ शांत हो जाता है , उसे महसूस होता है अपने गालो पे गिला पानी , नींद से जाग उठता है वो उसका पूरा बदन पसीने से भरा हुआ है पर उसमे से उसे खून की बदबू आती है।  वो जलाता है उस आधी जली और आधी बुझी हुए सिगरेट को और लेता है एक बहुत ही लम्बी कश जैसे की वो आखिरी बार लगा रहा हो उसे अपने होंठो से।  सिगरेट के धुएं में उसे अपने महबूब की तस्वीर दिखाई देती है वही दर्द भरी आँखे जैसे बोल रही हो जाओ तुम्हे मौत भी नसीब नहीं होगी ऐसे ही तरपोगे तुम, तुम्हारी यही सजा है।  धीरे धीरे धुवाँ हवा में मिलने लगता है और उसकी महबूब जाने लगती है , ऐसे में बस इतना ही बोल पता है वो............... Love you too....Khyal Rakhna!!!

ज़िंदगी

ज़िंदगी बहुत याद आ रही है तुम्हारी , और ये कम्बक्त आँशु न जाने क्यों रुक नहीं रहे , ऐसे तो ये कभी निकलते नहीं , पर आज न जाने क्यों मुंबई की बारिश जैसे हो गए है। मालुम है मुझे मुझे रोता देख तुम बहुत रोती और उदाश भी हो जाती पर क्या करू ये भी मेरी तरह बेवफा है आखिर आँशु भी तो मेरे ही है इनसे क्या शिकायत करू।  तुम शायद बहुत अकेली और उदाश हो अभी और शायद इसलिए ये मेरी आँखे गीली कर रहे है। तुम्हे याद है मैंने एक बार कहा था तुम उस ब्लू वाली सूट में बहुत अच्छी लगती हो, आज भी मेरे मोबाइल के कांटेक्ट में तुम्हारा वही वाला फोटो सेव है। उस फोटो में तुम्हारा स्माइल भी काफी अच्छा है, पता नहीं भगवान मेरी सुनेगा या नहीं पर अगर सुन रहा है तो वो हसी हमेसा तुम्हारे चेहरे पे रहे। पता है कभी कभी लगता है तुम यही हो और मुझे देख रही हो, मुझसे बात कर रही हो और ढेर सारा झगड़ा भी कर रही हो और फिर अंत में हम दोनों रोते है और एक दूसरे को मनाते है। ऑफिस से घर आता हूँ तो लगता है की तुम इंतज़ार कर रही हो की मैं फ़ोन कर के बताऊंगा की मैं ठीक से घर पहुंच गया हूँ, और तुम घर पहुंची की नहीं ये जानने के लिए मन बहुत बेचैन हो जाता है, पता है तुमको कभी कभी बहुत बेचैनी लगता है बहुत परेशान हो जाता हूँ , और तुमको तो पता ही है ऐसे में मैं सिर्फ तुमसे बात करता था।  अब कोई नहीं रहता बात करने को ऐसे ही खुद को समझाना परता है। तुमको पता है मैंने गजल सुनना बंद कर दिया है, आज कल नहीं सुनता, पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लगता। आज कल ऐसे ही Youtube पे कुछ कुछ देखता रहता हूँ कुछ खास पसंद का वीडियो नहीं है बस ऐसे ही कुछ भी देख लेता हु। देखो ना फिर से तबियत ठीक नहीं लग रहा है , सोच रहा हु की थोड़ी देर सो लू नींद तो नहीं आएगी पर कोशीश करता हु।  तुम ठीक हो ना ? पता है मुझे अगर मैं ये पूछता अभी तुमसे तो तुम यही बोलती की "ज़िंदा हु ", ऐसा मत बोला करो प्लीज, बहुत दर्द होता है..... ख्याल रखो अपना।

तुमने ये गुलज़ार की नज़्म पढ़ी है क्या ?
Aaj phir chaand ki peshani se uthta hai dhuan
Aaj phir mehki hui raat mein jalna hoga
Aaj phir seene mein suljhee hui vazni sansein
Phat ke bas toot hi jayengi, bikhar jayengi
Aaj phir jaag ke guzregi tere khwaab mein raat
Aaj phir chaand ki peshani se uthta hai dhuan
Aaj phir mehki hui raat mein jalna hoga 

A unique fondness.......

आज बहुत दिनों बाद हिंदी लिखने बैठा था पता चला की मैं हिंदी लिखना भूल गया हूँ , ठीक वैसे ही जैसे जीना भूल गया हूँ। सोच रहा हूँ की कोई काले कागज वाला नोटबुक खरीदू और कब्रिस्तान की सफ़ेद हड्डी से लिखुँ उसपे कवितायेँ जो अक्सर मैं लिखता रहता हूँ अपने ख्वाबों में, जब नींद से चल रही होती ही लड़ाइयां काली अँधेरी मगर शोर करती हुए रातों से।  लिखुँ उसपे वो सारी नज़्में जो अक्सर जेहन में आती है मेरी, जब जब सिगरेट के धुएं में तुम्हारी शूरत नजर आती है।  उस काले कागज के ऊपर मैं लिखना चाहता हूँ इबादतें शैतान के लिए और लिखना चाहता हूँ ढेर सारी बददुवाये ऊपर वाले के लिए जिसने ये सारी दुनीया बनाई है। मैं उस काले कागज के ऊपर अपनी नाकाम्यबिनाँ लिखना चाहता हूँ, तुम्हारी हँसी लिखना चाहता हूँ , अपने आंशू लिखना चाहता हूँ, और सबसे अंत में चाहता हूँ की लिखू......................ख्याल रखना..............Love you too

दुख के समुन्दर में डूबती कागज की कश्ती......

बचपन में बनाना सीखा था उसने कागज की नाव, बारिश में मौसम में जब आँगन पानी से भर जाता था तब तो बनाता था कागज की नाव और छोर देता था उसे तैरने के लिए वो नाव तब तक तैरती थी उस आँगन में जब तक बारिश की मोटी मोटी बुँदे डूबा न देती थी उसे, बचपन का चंचल मन कुछ समय बाद भूल जाता था उसे नाव को।  आज भी कही न कही उस नाव की यादें बसी हुई है उस कवि के मन में।
कही पे शायद पढ़ा था की अगर जीवन में दूख ना हो तो सुख की अनुभूति नहीं की जा सकती, पर अगर दूख रेल की पटरी की तरह हो तो ?? अगर दूख मैथ के इन्फिनिटी की तरह हो तब क्या ? मैथ में पढ़ा की अगर  किसी चीज को जीरो से डिवाइड किया जाये तो इंफिनिटी होता है, तो फिर ऐसी कौन  चीज है जिसे जीरो से डिवाइड किया जा रहा है , मैथ हमेशा की तरह फिर से कोम्प्लिकेटेड हो गया।
मुट्ठी से फिसलते हुए रेत की तरह ज़िंदगी फिसलती जा रही है, साँसे क्यों चल रही है कवि समझ नहीं पाता , हर रोज़ उठ के सोचता है की आज बेहतर होगा , पर वो आज कभी नहीं आता, और फिर वो एक दिन गुजार लेता है बिना कोई सवाल किये हुए।
अध जगे नींद में वो देखता है अनंत सागर को, जो कभी   बेहद शान्त तो कभी बेहद तूफानों से घिरा हुवा दीखता है , और पाता है खुद को लहरों के ऊपर, हर पल उसे लगता है की वो डूबने वाला है पर वो डूबता नहीं , वो चाहता है की वो खुद को समुन्दर के हवाले कर दे पर समुन्दर उसे कबूल नहीं करता और लहरो के सहारे उसे किनारे पे पटक देता है, नींद खुल जाती है उसकी और वो महसूस करता है रेत की खूश्बू जो कीनारे पे लग गई थी शायद।  उसने ज़िन्दग़ी के हर पल को हंस के जिया था और आज ज़िंदगी जैसे नासूर बन के रह गई है , जिसे अलग करने पे भी दर्द होगा और अगर वो जुड़ी रही तब भी तकलीफ देगी। पता नहीं ये अधूरा सफर कब अपने मुकाम पर पहुंचेगी, बस जिए जा रहा है.......... एक सफर है जो तय करना है उसे.. . . . . . . . . कभी कभी वो खुद को उसी बचपन की नाव में बैठा हुवा महसूस करता है , फर्क बस इतना दीखता है की वो नाव किसी आँगन के जमे हुए पानी में नहीं बल्कि दूख के अथाह समुन्दर में तैरती दिखती है. . . . . . . . . इंतज़ार बारिश की उन मोटी बूंदों का है जो नाव को डुबो दे और वो अंत करे इस सफर का.........बस उसे इतना वक़्त चाहिए नाव के डूबते समय की वो सज़दा कर पाये अपने खुदा की आखिरी बार... . . . दुवा मांग पाये उसकी सलामती की, शुकुन मिल जाये उसे और कर पाये वो सबको अलविदा हमेशा  के लिए!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

आत्मदाह

मैंने कई बार देखा है उसे ठिठुरती रात में छत पे बैठ के सितारों को निहारते हुए, ना जाने क्या बातें करता है वो उन सितारों से शायद कुछ समझाना चाहता है उन्हें, या फिर करना चाहता है कोई ऐसी बात जो बोल नहीं पता कभी. न जाने कौन सा दर्द लिए जिए जा रहा है वो ,की  सारी मधुशाला पी के भी उसकी प्यास नहीं बुझती । अपने ही धून में रहता है वो , कभी किसी से बात नहीं करता , कैसे जी सकता है कोई इन्शान ऐसे.…रात के अँधेरे में कई बार मैंने महसूस की है उसकी शिशकिया, सुन के ऐसा लगता है जैसे उसकी आत्मा किसी बोझ से दबी हुए है, एक दो बार राह चलते मिला हूँ  उससे उसकी आँखे बहुत डरावनी है बिलकुल खामोश , जैसे लाखों तूफ़ान अपने अंदर दबाये हुए हो. पूरा दिन घर में बंद रहने से उसका शरीर पीला पर गया है, बहुत कम  निकलता है वो अपने घर से, कभी किसी को नहीं देखा उसके घर में आते-जाते , शायद कोई दोस्त नहीं है उसका इस शहर में, बिलकुल अकेले जिए जा रहा है वो अभागा इन्शान।  बस एक-दो बातें है जो हर दिन देखने को मिल जाती है, आधी रात को कही से लरखाराते हुए आना,रात में सितारों को देखना और फिर वो दर्द भरी शिशकारिया।
ऐसे तो मैं संडे को बहुत लेट से उठता हूँ , पर आज उठना पर, न जाने कौन बहुत देर से कॉल बेल्ल बजाये जा रहा है।  गेट खोल के देखा तो वही अभागा इन्शान था, माफ़ी मांगते हुए उसने किसी मंदिर का पता पूछा और चला गया, कुछ अजीब सा लगा. मैंने भी अपनी चाय पी और सोचा चलो मंदिर हो के आता हू इसी बहाने अगर वो मिला तो कुछ बातें भी हो जाएँगी और उसको जानने का मौका भी मिलेगा, इतने दिनों बाद बात की है शायद दोस्ती करना चाहता होगा। मंदिर के पास में एक छोटी सी नदी है , लोग कहते है की वो गंगा का हिस्सा है, मंदिर पहुंच के देखा तो वो नदी में खरा हो के कुछ मंत्रो का उच्चारण कर रहा था, मैंने सोचा की चलो अच्छा है शायद ये अपनी ज़िंदगी की नई शुरुवात करने वाला है,
शायद उस दिन अमावश था.,,,,रात बिलकुल काली और डरावनी थी.… लैंप पोस्ट की रौशनी में मुझे फिर से वो छत पे दिखाई दिया लेकिन आज वो ज्यादा देर तक रुका नहीं वह और जल्दी ही चला गया.…रात बहुत ही डरावनी प्रतीत हो रही थी और नींद मेरी आँखों से कोशो दूर थी.… पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था की मुझे उससे जाकर मिलना चाहिए ……पता था था मुझे की ये सही समय नहीं है किसी के घर जाने का फिर मैं खुद को रोक नहीं पाया और उससे मिलने चला गया उसके घर..... जाने किसका इंतज़ार था उसे घर के दरवाजे खुले रखे थे उसने और सारे लाइट्स ऑफ थे, लाइट्स ओन कर के देखा तो वो अपनी हॉल के सोफे पे लेता पर था, चारो तरफ जैसे खून ही खून था, उसने अपनी नब्जे काट ली थी, और रुक्सत ले लिया था इस दुनिया से। बाद में पुलिस आई  उसके  घर की तलाशी ली गए लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे उसकी पहचान होती, बस एक डायरी मिला जिसमे उसने कैद की थी कुछ चंद यादें ,एक लावारिश मौत मिली थी उसको, इससे बढ़कर और बुरी किस्मत क्या होगी जब किसी की लाश पे लिपट के रोने वाला भी कोई न हो.....उसकी  डायरी के कुछ आखिरी पन्ने पढ़े थे मैंने, हर एक लाइन उसके दर्द को बयां कर रही थी........ कुछ ऐसा लिखा था उसने
"
क्या कभी देखा है तुमने किसी को बार-बार  मरते हुए, मैं मर रहा हूँ  हर पल,हर दिन, हर लम्हा, कई बार तो अपना श्राद्ध भी किया है मैंने ..........तुमसे दूर जाने का दर्द और जीने नहीं देता जान, शायद यही सजा है मुझे जैसे अभागे की.…आज फिर से कर रहा हु अपनी आत्मा का दहन, फिर से मर रहा हु मैं और कर रहा हु अपना श्राद्ध,……तेरा प्यार, तेरा दर्द, तेरा गम ओह........ बहुत दर्द है जान.…ज़ब ना रहू तो एक दीप जल देना उस पत्थर के आगे जहा माँ की ममता मिलती थी मुझे , दो आँशु बहा देना और वापस चली जाना......उतना बुरा भी मैं नहीं था जितना तुमने सोचा था.…अब वक़्त हो चला है अलविदा करने का.………ख़याल रखना।
"
अगले दिन वापस मदिर गया मैं.....शायद शांति चाहिए थी मेरे मन को.…मंदिर में वही मंत्र सुनाई दिया जो कल वो अभागा इन्शान पढ़ रहा था नदी में खरा होकर। पास जाकर देखा तो कोई पंडित थे, जो किसी का श्राद्ध कर रहे थे ठीक उसी जगह खरे होकर जहा कल वो खरा था।
अभी समझ में आया की वो कल अपना श्राद्ध कर रहा था, उसे पता था की कोई नहीं करने वाला उसका श्राद्ध, कोई नहीं आने वाला उससे लिपट के रोने , कोई नहीं है किसे फर्क परता है उसके होने या ना होने से.………
अब रात को कोई छत पे नहीं दीखता ना ही वो दर्द भरी शिश्कियां सुनाई देती है.…फ़िर भी हर रात याद आता है वो अभागा इन्शान जिसने बिना किसी को कुछ कहे अलविदा कर दिया सबको, जिसने कर दिया अपना आत्मदाह .......... और याद अाता है उसके वो  मंत्र जो पढ़े थे उसने आखिरी बार !!!!!!!
"नैनं छिदन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः"

कुछ तुम्हारे लिए !!!!!

ज़िंदगी जब खेलने लगती है जिस्म के इस खिलौने से , जब हर एक सांस लेना भारी परने लगता है इंसान को ऐसे में दर्द का मारा कवी मैखाने नहीं जाये तोऔर  कहा जाये।  थके हुए दिमाग और सरे हुए जिस्म का बोझ उठाना कितना भारी होता है कोई उस कवि से पूछे जिसने दर्द के कहर से अपनी सबसे प्यारी चीज, अपनी कलम को फेंक दिया है काफी पहले। फिर भी लिखना चाहता है अपनी दास्ताँ और बनाता है किसी कब्रिस्तान की हड्डी को अपना कलम और काट लेता है अपनी नब्ज़ों को, लिखने बैठता है अपनी दास्तान। लाखों शिकायते लिखी जाती है अपने खुदा के लिए, गलियां लिखी जाती है दुनिया के रस्मों रिवाजो के नाम........लिखी जाती है हर उस जुर्म की दास्तान जो उसने किया है अपने महबूब के ऊपर जाने-अनजाने में। एक - दो नब्ज़ उभरते है उसके महबूब के नाम जहा लगाई जाती है गुहार अपने माफ़ी की.…खून जब काम परने लगता है जिस्म की और पलके बंद होने लगती है तो लिखता है आखिरी लाइन अपने खूबसूरत साथी के नाम और बंद कर लेता है अपने नजरें......
Love you too
Khyal Rakhna!!!!!